ad1

Wednesday, 30 August 2023






आयआयटी/नीट कोचिंग  :

शिक्षा या ब्यापार ?

आज कल शिक्षा के मायने बदल चुके है। जो तुरन्त नोकरी दें वही शिक्षा। इसी कारण कोई भी दसवी कक्षा पास छात्र आर्ट्स, कॉमर्स जैसे पारंपरिक डिग्री लेने में दिलचस्पी नही रखता। माता पिता को हर हालत में अपना बेटा डॉकटर या इंजिनियर चाहिये।  फिर कोचिंग पढाइ में कितना भी खर्च क्यों न हो,  उसकी उन्हे पर्वा नही। अफसोस इस बात का के समाज की यह पक्की धारणा बन चुकी है -जादा पैसा याने 'सक्सेस' याने जादा इज्जत और शोहरत। माता पिता अपने बेटी-बेटोको पढाते इसलीये कि वह मोटा पैसा कमा सकें। यही वजह है के आज कोचिंग का ब्यापार बहोत तेजीमें है। 'जैसी डिमांड वैसी सप्लायी'  इसलीये आज देश के हर शहर के कोने कोने मे कोचिंग के बडे बडे सेन्टर शुरु हो चुके है जिसमे आयआयटी, नीट, बँकिंग या यूपीएससी जैसे क्लासेस शामिल है। शिक्षा एक पवित्र क्षेत्र है लेकिन कुछ असामाजिक तत्व जादा पैसे कमाने की लालच में उसे एक ब्यापार समझ बैठे है और सिधे छात्र के करीयर से खिलवाड हो रहा है। आये दिन समाज मे ऐसें सेकडों किस्से सूनने मिलेंगे, कुछ किस्से इस प्रकार :

पहला किस्सा : महाराष्ट्र का अर्णव बहोत ही होशियार और मेहनती लडका था। एक गरीब किसान होनेके बावजुद पिता रमेश अपने बेटे अर्णव को बडे शहर भेजकर उच्च शिक्षा दिलाना चाहते थे। दसवी कक्षा के नतीजे देख रमेश ने पुत्र अर्णव को शहर के नामचीन 'आयआयटी कोचिंग सेन्टर' में भेजने का निश्चय किया जहाँ के अध्यापक शहर मे मशहूर है। किसान होने के बावजुद पुत्रमोह में उन्होने पाई पाई जुटा कर  आयआयटी शुल्क के लिये ढाई लाख रुपये जूटाये। आयआयटी कोचिंग दो सालकी थी। लेकिन हुवा ऐसें के ग्यारहवी खत्म होने से पहले एक मुख्य अध्यापक ने नौकरी छोड दी और वह किसी और इन्स्टिट्युट से जुड गये।  सबसे अच्छे पढानेवाले अध्यापक ने नोकरी छोडने के कारण सभी बच्चों का करियर अब दांव पे लग चुका था, क्यों की नये अध्यापक के साथ उनकी फ्रेक्युन्सी जम नही रही थी।  छात्र और पालक शिकायत करते रहे लेकिन पैसो से गबर डायरेक्टर टस से मस नही हुए।  नाजूक परिस्थिती के कारण कहीं और क्लास जाना अर्णव और बाकी छात्र को संभव नही था। नतीजा,  सभी विद्यार्थीयोंको राम भरोसे छोड दिया गया, वे कहीं के न रहे। अर्णव आयआयटी एक्झाम में बहोत पिछे रह गया। आज एक मामुली इंजिनियरिंग कॉलेज में वह पढ रहा है।

दुसरा किस्सा :  मध्य प्रदेश के संजय कुमार सरकारी दप्तर मे एक मामुली क्लार्क है।  लेकीन बेटी दिव्या को पढा-लिखा कर डॉक्टर बनाना चाहते थे। पिता का सपना पुरा करने के लिये दिव्या भी पढाई में जुट गयी थी। ट्युशन और शहर में पढाने के खर्च के लिये पिता संजय कुमार बँक से कर्ज ले चुके थे।  लेकिन हुवा ऐसें के अध्यापक के आपसी रंजीश और झगडो के चलते ' नीट मेडिकल कोचिंग इन्स्टिट्युट' बिच मे बंद हुवा। छात्र को भगवान भरोसे छोड दिया गया,  वो कहीं के न रहे। दिव्या मेडिकल को जा न सकी और अब वह बीएस्सी पढ रही है। पालक एकजूट न होने के कारण तितर बिथर हो गये । इंस्टिट्यूट पहले ही सारा पैसे वसूल कर चुका था। उसका कोई बाल भी बाका कर न सका।

ऐसें अनेक किस्से आये दिन समाज मे देखणे-सूनने मिलतें है।  लेकीन समाज में असंवेदनशीलता इस कदर फैल चुकी है के किसी को इन 'फिजुल' बातो से फर्क नही पडता। आज सरकार का कोचिंग उद्योग पर कोई लगाम नही। ताजूब की बात के अखबार मे ऐसें किस्से उच्छाले नही जाते क्योंकी कोचिंग क्लासेस का विज्ञापन अखबार में देकर उनका मुंह बंद किया जाता। हंगामा ना हो इसलीये पुलीस तक बिक जाती है। नुकसान सिर्फ छात्र का होता है।

आज आयआयटी-नीटके कोचिंग का बाजार करोडो-अब्जो मे है। अकेले कोटा मे कोचिंग के लगभग ३०० केंद्र है। बडे शहर का 'ब्रँड'  सेन्टर छात्रको अपनी ओर खिंचने के लिये अखबार मे बडे बडे विज्ञापन देते है। लुभाने के लिये जरूरत पढे तो किसी और सेन्टरकी रँक करोडो रुपये देकर खरीदी/चुराई जाती है। नतिजा, ब्यापार जोरो में बढता है।  फिर कुछ बडे नामचीन अनुभवी अद्यापक को करोडो के पेकेज देकर बुलाया जाता है। लेकीन जैसे ही उन अध्यापकों का छात्रो के साथ जम बैठता है उनमे महत्वकांक्षा पैदा होती है। 'मेहनत करे मुर्गी और फकीर खाए अंडा' । उन्हे डायरेकटर कि मोटी कमाई बरदाश्त नही होती और अब उन्हे भी डायरेक्टर बननेके दौरे पडते है। । फिर वह एक जगह रुकते नही, छात्र को हवा में छोड चले जाते है। और इसी प्रकार एक साल में शहर मे दुसरा इंस्टिट्यून्ट पैदा होता है। फिर यह प्रक्रिया कभी रूकने का नाम नही लेती। चंद सालो में शहर का एक कोचिंग क्लास ८-१० नये क्लास को जन्म देता है।  ताजूब की बात इस प्रक्रिया में छात्र की पढाई, भलाई और करियर की किसी को फिकर कोई नही होता।  पैसा और क्वांटिटी के चक्कर मे शिक्षा की क्वालिटी नही रहती।  सिर्फ पैसा कमाना इतना ही उद्देश बच जाता है।

'गुरु गोविंद दोनो खडे का के लागू पाय...'  भारतीय समाज में गुरु का स्थान ईश्वर के भी उपर है। संत कबीर कहते है गुरु का महिमा लिखने के लिये समंदर की स्याही कम पड सकती है। गुरु जो शिष्य को सही राह पर चलाना सिखाते। गुरु वही जो हर हाल मे शिष्य को समर्पित होते है। गुरु वही गुरु का धर्म निभाते है। गुरु वही जो धन के लोभी नही होते। गुरु वही जिन्हे अपने भविष्य से जादा शिष्य के भविष्य की चिंता है।  इसका मतलब सभी एक जैसे है ऐसा नही, आज समाज मे कुछ अच्छे गुरु है।  लेकिन अफसोस की बात, कुछ कोचिंग के अध्यापक सारे समाजमुल्य, नितीमत्ता, संवेदना बाजू मे रख कर  चंद पैसो के लालच में अपना इमान धर्म छोड के छात्र का नुकसान कर देते है। शिष्य के करियर के साथ नाईंसाफी, खीलवाड करणेवाले अध्यापक क्या सचमूच गुरु कहलाने के लायक भी है?

पालक और छात्र की यह गलती कि वे इंस्टिट्यूट से भावनिक बंधनो मे जुड जाते है।  इसलीये आज जरूरत है पालक वर्ग को निंद से जागने की। इस समस्या के खिलाफ हर स्तरपर जोर शोर से आवाज उठाने की। आज भी देश के कई शहरो मे कोचिंग सेन्टर के साथ पालक वर्ग का लिखित करार नामा बनता है ताकी छात्र के साथ कोई धोका न हो। यह धोका टालने के लिये हर क्लास के पालक अपना ग्रुप तयार करें। पालक समिती और कोचिंग सेन्टर में एक लिखित करारनामा हो जिसमे पढाने जाने वाले सिलॅबस और अद्यापक का जिकर हो।  करारनामेपर लोकल एमपी, विधायक या नगरसेवक के हस्ताक्षर होतो और भी अच्छा है। ध्यान रहे इंस्टिट्यूट का चयन करते समय जहाँ स्वयं पढाने वाले स्थायी अध्यापक हो ऐसें जगह एडमिशन लेना चाहिये, बिचमे छोड भागणे वाले नही। पालकने ट्युशन फी जादासे जादा किस्तो में भरना चाहिये भले ही उस पर जादा ब्याज भरना क्यो न पडे।

अपने देशमें कोचिंग का व्यापार कई अब्ज रुपयों का है। लेकिन अफसोस की बात बजाय टॅक्स के उसपर आज तक कोई सरकारी कानून बना नही। यही वजह कि आज कोचिंग सेन्टर अपनी मनमानी चला कर छात्र के करियर के साथ खिलवाड कर रहे है। आज जरूरत है के सरकार ने इस समस्या को ध्यान में रख कर कुछ जरुरी कानून बनाना चाहिये और गलत बातों पर रोख लगानी चाहिये।

यह लेख खास समाजको जागृत करने के शुद्ध हेतु से  लिखा गया है।  समाज को जागृत करने के लिये आप इसे जादा से जादा लोगो न्को शेअर करे।


© प्रेम जैस्वाल, premshjaiswal@gmail.com
(नाम के साथ शेअर करनेमे मुझे कोई एतराज नही।)


3 comments:

  1. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  2. Great article Mama ji.... Fact of today's education system... Golden lines

    ReplyDelete